कृषि एवं पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (कपास) की परियोजना (R.T.D.P) ऐसे सवालों पर आधारित है, जिनका उत्तर अगर आज न खोजा गया तो बहुत देर हो जायेगी। आज हरित क्रान्ति के नाम पर अधिकाधिक फसल लेने के चक्कर में हमारे किसान भाई रासायनिक खादो व रासायनिक कीटनाशको का अंधाधुन्ध प्रयोग कर रहे हैं। शुरू में कछ दशकों के दौरान ये रासायनिक खाद आश्चर्यजनक तौर पर लाभदायक थी और भारतीय किसानों तथा अर्थशास्त्रीयों ने इसे कृषि क्रान्ति के रूप में लिया, लेकिन समय के साथ किसानों तथा कृषि विशेषज्ञों को एहसास हुआ कि इन रसायनों के ज्यादा प्रयोग से न केवल कृषि योग्य भूमि को नुकसान पहुंचा है, बल्कि फसलों को भी नुकसान हुआ। रासायानिक खाद के प्रयोग की फसल में न केवल मनुष्य के जीवन को नुकसान पहंचाया बल्कि , कृषि योग्य भूमि को भी l अगर आप आज़ भी सोये रहे तो पूरूखों से मिली उपजाऊ धरती एक दिन बंजर जमीन में तब्दील हो जायेगी। अगर आप आज भी न जागे तो आप अपनी आने वाली पीढीयों को विरासत में बंजर जमीन व गरीबी देकर जाने को मजबूर होंगे l
21 वीं सदी में विश्व में ‘ जैविक उत्पादों ‘ का बाजार भी काफी बढ़ा है इसलिए समय की मांग है कि 60 के दशक की हरित क्रांति के कटु अनुभवों से सबक लेते हुए हमें दूसरी हरित क्रांति (Second Green Revolution) में रसायनों के इस्तेमाल में सावधानी बरते हुए जैविक खेती पर ध्यान देना चाहिए।
जैविक खेती कृषि की वह विधि है, जिसमें संश्लेषित (रासायनिक) उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं या न्यूनतम प्रयोग किया जाता है । यद्यपि उपरोक्त प्रावधानों से किसानों को लाभ तो अवश्य होगा, पर अब समय आ गया है कि हम अपनी खेती में कुछ बदलाव लाएं, मुख्य रूप से विविधीकरण की बात सोचें l विविध प्रजातियों के साथ-साथ बहुफसली चक्र भी अपनाने की जरूरत है l ऐसे फसल चक्र जो उत्पादन के साथ-साथ आय भी बढ़ा सकें उपलब्ध हैं l देश के विभिन्न भागों में किसानों ने पहले ही इस दिशा में कुछ पहल की है तथा इसका लाभ भी उनको मिला रहा है l प्रदेश में खासकर पूर्वांचल में प्रचलित धान – गेहूं की फसल चक्रो में कुछ परिवर्तन करने की जरूरत है l हमें अपनी खेती में कुछ और भी जोड़ने की जरूरत है जैसे हल्दी, अदरक, प्याज, लहसुन आदि की खेती तथा तरह-तरह के कंद, केले, सोयाबीन आदि की खेती बहुत लाभकारी सिद्ध होगी l जिनके पास अधिक खाली जमीन है, वह कुछ औषधीय पौधे जैसे आवला, तुलसी, चीनी तुलसी, नीबू, पपीता, करौंदा, जेट्रोफा, सहजन ( एक जादुई पेड़ ) आदि की खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं l अगले कुछ समय में विविधीकरण सम्बन्धी आवश्यक विषयों एवं बीज उत्पादन ( Seed Production) हेतु बीज उत्पादक समूहों का गठन कर प्रशिक्षण आयोजन कर किसानों को विस्तृत जानकारी देने की योजना ‘ कृषि एवं पर्यावरण अनुसंधान संस्थान ‘ ने बनाई है, जिससे कि संस्थान द्वारा महत्वकांक्षी योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा सके एवं उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार आ सके l इस संबंध में संस्थान ने कई शोध संस्थानों से भी संपर्क बनाया है, जो आवश्यक मदद देने को तैयार है l तो चलिए कुछ नया सोचते खेती को और लाभकारी बनाये l
आधुनिक उच्च कृषि प्रौद्योगिकी का उपयोग कर कृषि जगत में हम ‘दूसरी हरित क्रांति’ का सपना साकार कर सकते हैं l
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